भारतवर्ष के राजस्थान प्रदेश में जिला अजमेर तहसील केकड़ी गाँव अलाम्बू जन्मे कीर समाज जितेंद्र प्रसाद कीर आई एस की परीक्षा दूसरी बार में ही सफलता हसील कर पूरे समाज का नाम रोशन किया। उन्होने प्रारंभिक परीक्षा विवेकानंद स्कूल में जवाहर नवोदय विद्यालय अजमेर में और बीटेक की परीक्षा हिमाचल मंडी ग्रहण किया और सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्य करते रहे परंतु उनको तो पब्लिक सेक्टर में जाना था और अपने देश में रहकर एक अच्छी सेवा दे सके एग्जाम में दूसरी बार में 569 रैंक प्राप्त कर कीर समाजके पहले आई ए एस बने श्री जितेन्द्र प्रसाद कीर को बधाई देते हुए मुझे और समाज के लोगों को अपार हर्ष हो रहा है। हमलोग उनके आगामी भविष्य की मंगल कामना करते हैं।इस संबंध में मैं कश्यप संदेश पत्र के लेखक होने के नाते कीर समाज की वीरांगना, पूरी बाई कीर कीबहादुरी के बारे में संक्षेप में प्रकाश डालना चाहता हूं, क्यों कि उक्त समाज के कुछ साथियों ने रोष व्यक्त किया है कि वीरांगना पूरी बाई के बलिदान दिवस के अवसर पर समाज के किसी भी व्यक्ति ने उनके बारे में कुछ भी नहीं लिखा है, न ही बलिदान दिवस मनाया है। मैं उन साथियों से पूरे समाज की तरफ से क्षमा याचना करता हूं कि भूलवश ऐसा संभव है।अब मेरे इस संक्षिप्त लेख में वीरांगना पूरी बाई कीर कीबहादुरी और बलिदान की कहानी नीचे प्रस्तुत है।जो कीर समाज के साथ-साथ युवा आईएएस अधिकारी श्री जितेन्द्र कीर जी केलिए समर्पित है।
पूरी बाई कीर, मेवाड़ की एक वीरांगना।नाम-पूरीबाई -कीर समाज। प्रसिद्धि की वजह -करांतिकारी क्षेत्र -मेवाड़ जन्म -12दिसंबर 1797को मेवाड़ के केरांव गांव में इनका जन्म एक साधारण कीर परिवार में हुआ था। देश में कीर जाति को कहार,केवट,कश्यप,भोई आदि नामों से जाना जाता है। वीरांगना पूरी बाई तत्कालीन समय में झांसी की लक्ष्मी बाई जैसी योद्धा थीं इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ क ई लड़ाइयां लड़ी। सन् 1832मे तत्कालीन शासक सज्जन सिंह और मेहता गोपाल सिंह के दरबार में इस क्षेत्र की172बीघाजमीन इन्हें जागीर में दीग ई। बल्लभ गढ़ तहसील में उदयपुर, चित्तौड़गढ़ मार्ग पर मेनार मंगलवाडा चौराहे कोअबकीर की चौकी नाम से जाना जाता है, जहां इनकी भव्य प्रतिमा स्थापित कीग ई है, जो बहादुरी की प्रेरणा स्रोत है। विशेष कर।कीर समाज के लोगों द्वारा इनकी जयंती बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाई जाती है। उन्होंने अपने बल पर अपनी सेना बनाई और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाइयां लड़ी। उन्होंने ग्वालियर की एक लड़ाई में अंग्रेजों को हराया भी।वह भारत की एक महान स्वतंत्रता सेनानी भी थी और अपनीवीरतासेभारतको अंग्रेजों से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।1828मे इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया परंतु इनकी हार हुई और इन्हें बन्दी बना लिया गया,1869मे इन्हें रिहा कर दिया गया, परंतु दुर्भाग्य से उसी वर्ष इनकी मृत्यु भी हो ग ई। पूरी बाई की विरासत साहस प्रति रोध और बलिदान की है जो मेवाड़ केलिए एक प्रेरणा है। समाज की ऐसी वीरांगना केलिए,उनकेबलिदान दिवस परहमे गर्व होना चाहिए कि ऐसी वीरांगना हमारे बीच थी। अतः उनके बलिदान दिवस को भुलाया नहीं जा सकता है। लेखक पूर्व इंजीनियर रामवृक्ष वाराणसी