कश्यप सन्देश

4 December 2024

ट्रेंडिंग

आदिवासी: सभ्यता के आदि निवासी :बाबू बलदेव सिंह गोंड की कलम से

आदिवासी: सभ्यता के आदि निवासी :बाबू बलदेव सिंह गौड की कलम से

“आदिवासी” शब्द दो भागों से मिलकर बना है: “आदि” और “वासी”। “आदि” का अर्थ है प्रारंभ, शुरुआत, या आदिकाल, और “वासी” का अर्थ है निवास करने वाला। इस प्रकार, “आदिवासी” का तात्पर्य उन लोगों से है जो किसी स्थान पर सबसे पहले निवास करने वाले हैं। वे वही मूल निवासी हैं, जिनके पूर्वजों ने आदिकाल से पृथ्वी पर अपने स्थान को स्थापित किया।

इतिहासकारों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से “आदिवासी” की व्याख्या की है। कुछ पुस्तकों में “आदिवासी” को “जंगली जातियों” के रूप में संदर्भित किया गया है। “जंगली” शब्द का अर्थ अक्सर गलत तरीके से लिया गया है, इसे केवल जंगल में रहने वाले या नग्न अवस्था में रहने वाले लोगों के रूप में दर्शाया गया है। लेकिन यह परिभाषा न केवल अपूर्ण है बल्कि आदिवासियों के प्रति अन्यायपूर्ण भी है।

आदिवासियों की सभ्यता, संस्कृति और जीवनशैली का प्रमाण उनके पुरातात्विक अवशेषों में मिलता है। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, और पंजाब-सिंध क्षेत्र के अन्य स्थलों की खुदाई से उनकी सभ्यता के उच्च स्तर को समझा जा सकता है। इन स्थलों पर उनकी उन्नत स्थापत्य कला, अस्त्र-शस्त्र, और जीवनशैली के चिह्न आज भी देखने को मिलते हैं।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी पुस्तक “विश्व की झलक” में आदिवासियों के महत्व को स्वीकार किया है। चंडिका प्रसाद जिज्ञासु ने अपनी पुस्तक “भारत के आदि निवासियों की सभ्यता” में आदिवासियों की समृद्ध संस्कृति को प्रमाणित किया है। बाबू बलदेव सिंह गौर की पुस्तक “भारत के आदिवासी” में भी आदिवासियों के इतिहास और संस्कृति पर गहन प्रकाश डाला गया है।

आदिवासी केवल जंगलों में रहने वाले लोग नहीं हैं। वे प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहने वाले, अपनी विशिष्ट परंपराओं, रीति-रिवाजों, और कला-कौशल से समृद्ध समुदाय हैं। वे भारत की विविधता और सभ्यता के प्राचीन प्रतीक हैं। उनके योगदान को समझना और स्वीकार करना ही उनके प्रति सच्चा सम्मान है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top