महारानी दुर्गावती देवता का मानव अवतार साबित हुई। उन्हें आज भी अपनी संस्कृति की रक्षक और गौरव और सम्मान की प्रतीक के रूप में उनके बलिदानों के लिए याद किया जाता है। महारानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को मध्य भारत के सबसे महत्वपूर्ण किलों में से एक कालिंजर में हुआ था, जो उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में स्थित है।
रानी दुर्गावती जो इस समाज से ही थीं, संक्षेप में उनकी वीरता की कहानी लिखने की इच्छा हुई है,जिनकी वीरता के बारे में संक्षेप में प्रकाश डालने की कोशिश की गई है। रानी दुर्गावती का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले कै कलिंजर क़िले में 5अकटूबर 1524को हुआथा।वहएक प्र तिषिठित और प्र सिद्ध वीरांगना थीं। दुर्गा अष्टमी को पैदा हो ने के कारण ही इनका नाम दुर्गावती रखा गया था।बचपन से ही वह बहुत बहादुर महिला थी।और इन्हें घुड़सवारी का शौकथा। आगे चल कर इनका विवाह गढ़ा राज्य राजा दलपत शाह के साथ हुआ था जिसे गोंड राजा संग्राम शाह ने गोद लिया था।नाम के अनुसार ही वह एक तेज़,साहसी और अतिसुंदर भी थीं। रानी दुर्गावती कलिंजर केराजा कीर्ति सिंह चंदेल कीवह इकलौतीसंतानथीं। दुर्भाग्यवश विवाह के4सालबादहीइनकेपतिराजा,दलपत शाह की मृत्यु हो गई। उस समय दुर्गा वतीका एक मात्र पुत्र 3सालकाथा, रानी दुर्गावती ने पति के मरने के बाद स्वयं गढ़ा राज्य का शासन स्वयं अपने हाथों में ले लिया। वर्तमान में जो जबलपुर है,वह इनके राज्य का केंद्र रहा था। शासन-सत्ता संभालने के बाद तमाम झंझावातों का सामना इन्हें करना पड़ा। सूबेदार बाजबहादुर की रानी दुर्गावती पर बुरी नजर थी और उन्हें पाने केलिए उनके राज्य पर आक्रमण कर दिया, परंतु रानी के सामने उसे मुंह की खानी पड़ी। दूसरी बार वह फिर से युद्ध लड़ा और इस बार रानी ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया। इस तरह बाद में उसने फिर कभी युद्ध की हिम्मत नहीं की।रानी दुर्गावती ने तीन मुस्लिम राज्यों को युद्ध में परास्त किया।पराजित मुस्लिम राजा इतने भयभीत हुए कि उन्होंने गोंडवाना की तरफ झांकना ही बंद कर दिया। इन तीनों मुस्लिम राज्यों के विजय के बाद रानी दुर्गावती को अपार संपत्ति जीत स्वरूप मिली।
रानी दुर्गावती ने कुल 16वरषो शासन-सत्ता को संभाला,इस काल में उन्होंने अनेकानेक मंदिर,मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्म शालाओं का निर्माण कार्य कराया। वीरांगना रानी दुर्गावती दुर्गा ही थीं। यहां तक कि इनकी सुंदरता को देखते हुए राजा अकबर भी इन्हें चाहता था, आग्रह ठुकराने पर अकबर ने भी इनके राज्य पर आक्रमण कर दिया, परंतु वह झुकने वाली कहां थी,अकबर की बड़ी सेना से वह पराजित हो ग ईऔर अपनी अस्मिता की रक्षा करते हुए स्वयं कटार घोंपकर आत्म बलिदान कर लिया।इनकी मृत्यु 24जून सन् 1564मे जबलपुर जिले के जबलपुर,मंडला रोड पर स्थित बरेला के पास हुई थी। वहीं पर इनकी समाधि स्थल है। रानी दुर्गावती के इस वीरता पूर्ण चरित्र केलिए उन्हें इतिहास में शदियों तक याद किया जायेगा।हम सभी समाज केलोगोंको उनके वीरता पूर्ण बलिदान को याद रखना चाहिए।
लेखक रामवृक्ष भूतपूर्व इंजीनियर वाराणसी एवं प्राकृतिक चिकित्सक।