महर्षि वेदव्यास का जन्म त्रेता युग के अंत में हुआ और वे द्वापर युग का पूरा काल जीवित रहे। माना जाता है कि कलियुग के आरंभ में उन्होंने पृथ्वी का त्याग किया। महर्षि वेदव्यास की माता सत्यवती ने हस्तिनापुर के राजा शांतनु से विवाह किया था, जो भीष्म के पिता थे। इस प्रकार महर्षि वेदव्यास पितामह भीष्म के सौतेले भाई थे। वे बदरीवन में निवास करते थे, जिसके कारण उन्हें “बादरायण” के नाम से भी जाना जाता है।
महर्षि वेदव्यास को महाभारत युद्ध की आहट का पूर्वाभास दुर्योधन के जन्म के साथ ही हो गया था। उनकी कृपा से धृतराष्ट्र के सारथी संजय को दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई, जिससे संजय ने महाभारत युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को प्रत्यक्ष रूप से सुनाया। महाभारत के रचयिता वेदव्यास केवल इस महाकाव्य के निर्माता नहीं थे, बल्कि घटनाओं के साक्षी भी रहे। उनके आश्रम से हस्तिनापुर की सभी गतिविधियों की सूचना उन तक पहुंचती थी, और वे इन घटनाओं पर अपना परामर्श भी देते रहते थे।
कुछ मान्यताओं के अनुसार, उनका जन्म कालपी के निकट यमुना के एक द्वीप पर हुआ था। संस्कृत साहित्य में वेदव्यास को वाल्मीकि के बाद सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। उनके द्वारा रचित काव्य “आर्ष काव्य” के नाम से प्रसिद्ध हैं। महाभारत का उद्देश्य केवल युद्ध का वर्णन करना नहीं था, बल्कि इस भौतिक जीवन की क्षणभंगुरता को प्रदर्शित करना था।
महर्षि वेदव्यास का आश्रम चीन के पार सुदूर मेरु पर्वत पर स्थित था, जो महाभारत की एक कथा से भी पुष्टि होती है। उनके पुत्र शुकदेव उसी आश्रम से राजा जनक के पास मिथिला में ज्ञान प्राप्ति के लिए आए थे। महर्षि वेदव्यास का संपूर्ण जीवन मानवता के प्रति समर्पित था और उनकी रचनाएं आज भी हमें धर्म और जीवन की सच्चाई का ज्ञान कराती हैं।