भीमा नदी के तट पर बसा कोरेगांव, पुणे, महाराष्ट्र की वह भूमि है, जहाँ 1 जनवरी 1818 का दिन इतिहास में एक निर्णायक मोड़ लेकर आया। उस ठंडे दिन, पेशवा बाजीराव द्वितीय की 28,000 सैनिकों की विशाल सेना का सामना करने के लिए केवल 500 महार योद्धा, बॉम्बे नेटिव लाइट इन्फेंट्री के साथ खड़े हुए थे। ये बहादुर योद्धा, पेशवाओं द्वारा बहुजन समाज पर किए गए अत्याचारों का प्रतिकार करने के लिए उतरे थे।
भीषण संघर्ष के बाद, 500 महारों ने 28,000 पेशवाओं को परास्त कर दिया। इस युद्ध ने न केवल पेशवाओं का अंत किया, बल्कि ब्रिटिश सत्ता की स्थापना का मार्ग भी प्रशस्त किया, जिससे भारतीय समाज में शिक्षा का प्रसार हुआ। महात्मा ज्योतिराव फुले इसी शिक्षा से सामाजिक भेदभाव को समझ पाए और सावित्रीबाई फुले को महिला शिक्षा का मार्गदर्शन मिला। यदि इस विजय ने ब्रिटिश शासन का मार्ग न खोला होता, तो शायद डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जैसे महान नेता शिक्षा न प्राप्त कर पाते।
भीमा-कोरेगांव में आज भी विजय स्तंभ खड़ा है, जिस पर उन वीर महार योद्धाओं के नाम अंकित हैं, जिन्होंने अपना जीवन देश के लिए बलिदान कर दिया। 28,000 सैनिकों के सामने मात्र 500 योद्धाओं की यह साहसपूर्ण विजय हमारे इतिहास का एक गौरवपूर्ण अध्याय है।