कश्यप सन्देश

गोंड वंश:महार महरा: एक गौरवशाली संबोधन :बाबू बलदेव सिंह गौर की कलम से

महार महरा शब्द हमारे समाज में आदिवासी शाखाओं का एक महत्वपूर्ण संबोधन है, जो उनके ऐतिहासिक महत्व और सामाजिक संरचना की महानता को प्रकट करता है। जब हम इतिहास की दृष्टि से इन शब्दों का विश्लेषण करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि ये शब्द केवल संबोधन नहीं हैं, बल्कि एक गौरवशाली विरासत के प्रतीक हैं। इनका उपयोग विशेष रूप से राजवंशों के नामों में होता आया है, जहां शासकों और उनके साम्राज्य की महानता का परिचय मिलता है।

आज भी इस शब्द से संबोधित समाज का एक विशेष महत्व है, क्योंकि वे प्राचीन काल में राज्यशक्ति के निकट निवास करते थे। यह संबंध उनके पुरातन काल की राजनैतिक निकटता को प्रकट करता है, जो उनके शौर्य और प्रशासनिक क्षमता का प्रमाण है। जब हम उनके परिवेश और सामाजिक जीवन को देखते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत के कई राजवंश इनका सम्मान करते रहे हैं। इनमें महाराज छत्रसाल का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जो इस वंश के एक महान राजनीतिक नेता थे।

हालांकि समय के साथ सामाजिक उथल-पुथल ने इस गौरवशाली वंश के स्वरूप को छिपाने की कोशिश की, लेकिन गोंड वंश के साथ इनके ऐतिहासिक संबंधों ने इस समाज की गरिमा को सदैव उच्च रखा। बाबा साहब अंबेडकर, जो आधुनिक युग के इस वंश के प्रतिनिधि थे, ने भी इस समाज की प्रतिष्ठा को आगे बढ़ाया और उनके अधिकारों की रक्षा की।

आजकल, कहीं यह समाज जनजाति के रूप में पहचाना जाता है, तो कहीं पिछड़ी जाति के रूप में। शासन ने इन्हें विशेष सुविधाएं प्रदान की हैं ताकि इनका विकास सुनिश्चित हो सके। लेकिन, “महार” और “महरा” जैसे शब्द केवल इन समाजों के लिए ही उपयोग में आते हैं और अन्य किसी वर्ग के लिए यह संबोधन नहीं दिया जाता। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह शब्द केवल एक जातिगत संबोधन नहीं, बल्कि ऐतिहासिक रूप से राजशक्ति और गुणों से भरे एक समाज का प्रतीक हैं।

इस प्रकार, महार और महरा संबोधन न केवल एक आदिवासी शाखा का परिचय देते हैं, बल्कि एक प्राचीन राजवंश की विरासत, उसकी शक्ति और उसके गुणों का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।

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