गूंज रहा धरती से अंबर तक, ऋषि कश्यप का संदेश,
धारण जो करते हैं उनके, कट जाते दुख कष्ट क्लेश।
ज्ञान, विवेक, भक्ति, श्रद्धा, सद्भाव का अनुपम दर्शन है,
रक्षा करता इनकी प्रतिपल, हरि का चक्र सुदर्शन है।
शक्तिहीन सुर शक्ति पाते, बन जाते हैं रंक नरेश,
धारण जो भी करते उनके, कट जाते दुख कष्ट क्लेश।
माता-पिता गुरु शिक्षक का, मान करें और कहना माने,
जानना है तो सबसे पहले, कौन है हम अपने को जाने।
कहां से आए कहां है जाना कौन है सच्चा लोक व देश,
धारण जो भी करते उनके, कट जाते दुख कष्ट क्लेश।
दोष वा दुर्गुण शत्रु मिटाना, यह ही विजयदशमी है,
प्रकृति पुरुष और जीव त्रिगुणमय सारा खेल तिलस्मी है।
योग साधना संयम से ही, मानव बनता व्यक्ति विशेष,
धारण जो भी करते उनके, कट जाते दुख कष्ट क्लेश।
हिंसा, घृणा, मोह, मद, क्रोध, इनसे घटे चेतना क्रोध,
सहना सीखे, बहना सीखे, क्षमा करें भूल प्रतिशोध।
संत महात्मा, ऋषि मुनियों का, यही रहा उत्तम उपदेश,
धारण जो भी करते उनके, कट जाते दुख कष्ट क्लेश।
देवी-देवों के हम बालक, हम ऋषियों मुनियों की संतान,
जागते-सोते सपने देखें, सदा रहे यह हमको ध्यान।
वेदव्यास, वाल्मीकि, तुलसी, कवि रामकृष्ण का है आदेश,
धारण जो भी करते इनको, कट जाते दुख कष्ट क्लेश।
हर हृदय में होता रहता, हरदम देव-सुर संग्राम,
असुरों का संहार है होता, विजयी होते हैं श्रीराम।
सिया-राम के संग ही रहती, जगत योग भाषा का देश,
धारण जो भी करते इनको, कट जाते तो कष्ट क्लेश।
नौ तत्वों की सृष्टि है सारी, एक आत्मा स्वामी है,
हर वस्तु में बस उसी का, वह ही अंतर्यामी है।
इसके अंतर्गत ही रहते, गणपति ब्रह्मा विष्णु महेश,
धारण जो भी करते इनको, कट जाते दुख कष्ट क्लेश।