महर्षि वेदव्यास का जन्म नेपाल के तानहु जिले के दमौली में हुआ था। जहाँ उन्होंने महाभारत की रचना की, उस गुफा को आज भी देखा जा सकता है। वेदव्यास जी को भगवान विष्णु का 18वां अवतार माना जाता है। उनका जीवन त्रेता युग के अंत में शुरू हुआ और वे द्वापर युग तक जीवित रहे। कलियुग के आरंभ में उन्होंने पृथ्वी से प्रयाण किया।
महर्षि वेदव्यास के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण कथाएँ भी हैं। महाभारत युद्ध की आहट को उन्होंने पहले ही पहचान लिया था, और उनकी ही कृपा से धृतराष्ट्र के सारथी संजय को दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई थी। वेदव्यास जी हस्तिनापुर की घटनाओं के साक्षी रहे और उन्हें परामर्श देते रहे।
महर्षि वेदव्यास को संस्कृत साहित्य का महान कवि माना जाता है, जिनके काव्य आर्ष काव्य के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका उद्देश्य युद्ध का वर्णन करना नहीं, बल्कि जीवन की निःसारता को उजागर करना था। उनके पुत्र शुकदेव महान बालयोगी थे, जिनके ज्ञान और साधना की महिमा आज भी अमर है।
महर्षि वेदव्यास जी का आश्रम चीन के उस पार, सुदूर मेरु पर्वत पर था, जैसा कि महाभारत की कथाओं में संकेत मिलता है। उनके पुत्र शुकदेव भी इस आश्रम से निकलकर ज्ञान प्राप्ति के लिए राजा जनक के पास मिथिला गए थे।
इस प्रकार महर्षि वेदव्यास न केवल वेदों के महान रचयिता थे, बल्कि भारतीय पौराणिक और आध्यात्मिक साहित्य के स्तंभ भी थे। उनका जीवन और कार्य भारतीय संस्कृति में हमेशा पूजनीय रहेंगे।