पौराणिक कथाओं के अनुसार, गुरु वशिष्ठ के पुत्र शक्ति और शक्ति के पुत्र पराशर हुए। पराशर स्वयं सिद्ध महर्षि थे, जिन्होंने दाशराज की कन्या सत्यवती से वेदव्यास को जन्म दिया था। जन्म के समय वेदव्यास जी का वर्ण श्याम था, इसलिए इनका नाम कृष्ण हुआ। इनका जन्म यमुना नदी के द्वीप में हुआ था, इसलिए इन्हें कृष्ण द्वैपायन के नाम से भी जाना गया। आगे चलकर कृष्ण द्वैपायन ने वेदों का व्यास अर्थात् विभाजन, विस्तार व सम्पादन किया, इस कारण मूल नाम से ये वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनकी पत्नी का नाम आरुणी था और पुत्र महान बालयोगी शुकदेव थे।
आदि पर्व की कथा के अनुसार, जन्म के बाद ही कृष्ण द्वैपायन ने माता सत्यवती से तपस्या के लिए वन जाने की इच्छा जाहिर की, लेकिन माता इसके लिए राजी नहीं थी। तब पुत्र ने वचन दिया कि उनके स्मरण करते ही वे योग शक्ति से तत्क्षण होकर उनके सामने आ जाएंगे और फिर मां की आज्ञा लेकर कृष्ण द्वैपायन तपस्या में लीन हो गए। हालांकि, वे स्वयं ईश्वर के अवतार थे, इसलिए तप से परे स्वयं सिद्ध थे, लेकिन लोक कल्याण के लिए उन्होंने तपस्या का सुंदर आदर्श रखा।