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आगरा, भारत – ऐतिहासिक ईटौरा देवी मेला का आयोजन एक बार फिर से आगरा से 10-12 किलोमीटर दूर ग्वालियर रोड स्थित इतौरा गांव के पवित्र प्रांगण में किया जा रहा है। यह मेला निशाद कश्यपc समाज के लिए अत्यधिक सांस्कृतिक महत्व रखता है। समाज के लोगों का मानना है कि इस मेले की परंपरा उनके पूर्वजों के समय से चली आ रही है। खासकर शुक्ल पक्ष की अष्टमी और नवमी तिथियों पर समाज अपनी कुल देवी – महालक्ष्मी, महाकाली और महासती की विशेष पूजा-अर्चना करता है।
यह पारंपरिक मेला उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, और दिल्ली से हजारों लोगों को आकर्षित करता है। मेला केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक मेल-जोल और सद्भाव का अवसर भी है। समाज के लोग बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं, परिवार और मित्रों से मिलते हैं, और आपसी विवादों का समाधान खोजने के लिए चर्चा करते हैं। समाज के वरिष्ठ और बुद्धिजीवी सदस्य इन विवादों का शांतिपूर्ण समाधान कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस मेले की एक प्रमुख विशेषता समाज के योग्य वर-वधुओं का परिचय समारोह है। निशाद कश्यप समाज के कई परिवार इस मेले में अपने बच्चों के लिए उपयुक्त जीवनसाथी की तलाश में आते हैं। पुराने समय में यह मेला 10-12 दिनों तक चलता था, जिसमें लोग दूर-दूर से आते थे और अपने परिवारों के साथ रहते थे। मेले में ही विवाह संबंध तय किए जाते थे और समाज के वरिष्ठों की उपस्थिति में विवाह संपन्न होते थे।
इतौरा देवी मेला ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि समाज के पूर्वज ही सामूहिक और दहेजरहित विवाहों की परंपरा के प्रवर्तक थे। यह परंपरा आधुनिक सामूहिक विवाहों की नींव मानी जाती है
समापन समारोह:
ईटौरा देवी मेला समिति (निशाद कश्यप समाज) द्वारा आयोजित इस दो दिवसीय मेले का शुभारंभ ग्राम लड़मदा की प्रधान पूनम कश्यप द्वारा किया गया। मंदिर परिसर में रात्रि को भजन-कीर्तन का आयोजन भी किया गया। मेला समिति के अध्यक्ष विजेंद्र कश्यप ने मेले के सफलतापूर्वक संपन्न होने पर सभी को धन्यवाद दिया और समाज से आग्रह किया कि वे अपनी संस्कृति का निरंतर निर्वहन करते रहें।