कश्यप सन्देश

19 September 2024

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प्रथम संन्यासी सांसद: स्वामी ब्रह्मानंद लोधी के पुण्य-तिथि पर श्रद्धांजलि: कश्यप संदेश परिवार

स्वामी ब्रह्मानंद जी का जन्म आज से लगभग 130 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले की राठ तहसील के बरहरा गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनका प्रारंभिक नाम शिवदयाल था। बचपन से ही स्वामी जी का रुझान आध्यात्मिकता की ओर था। संतों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक या तो राजा बनेगा या फिर एक महान संन्यासी। उनके पिता को भय था कि शिवदयाल कहीं साधु न बन जाएं, इसलिए उन्होंने उनका विवाह सात वर्ष की आयु में राधाबाई से कर दिया। विवाह के बाद भी शिवदयाल का चित्त आध्यात्मिकता में ही लगा रहा, और 24 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने परिवार का मोह त्याग कर संन्यास धारण कर लिया।

हरिद्वार में “हर की पैड़ी” पर शिवदयाल ने संन्यास की दीक्षा ली और स्वामी ब्रह्मानंद के नाम से प्रसिद्ध हो गए। इसके बाद उन्होंने समाज सुधार के लिए कई कार्य किए, जैसे कि शिक्षा का प्रचार-प्रसार और गौहत्या के खिलाफ आंदोलन। स्वामी जी ने अपने जीवन को पूरी तरह से समाज और देश की सेवा में समर्पित कर दिया। उन्होंने अंधविश्वास, जातिवाद, छुआछूत और अशिक्षा जैसी सामाजिक बुराइयों का डटकर विरोध किया।

1966 में स्वामी जी ने गोहत्या निषेध आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन में उन्होंने लगभग 10 लाख लोगों के साथ संसद के सामने प्रदर्शन किया। आंदोलन के परिणामस्वरूप उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया। तभी स्वामी ब्रह्मानंद जी ने प्रण लिया कि अगली बार वह संसद में चुनाव लड़कर प्रवेश करेंगे। 1967 में उन्होंने हमीरपुर लोकसभा सीट से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ा और भारी मतों से विजयी होकर सांसद बने। वह 1967 से 1977 तक संसद सदस्य रहे, और इस प्रकार भारत के पहले संन्यासी बने जो आजाद भारत में सांसद बने थे।

स्वामी ब्रह्मानंद जी का संसद में दिया गया गौवंश की रक्षा और गौवध के विरोध में एक घंटे का ऐतिहासिक भाषण आज भी याद किया जाता है। उन्होंने भ्रष्टाचार, दलित शोषण, कुरीतियों और जातिवाद जैसे मुद्दों पर भी संसद में अपने विचार रखे थे।

स्वामी ब्रह्मानंद जी का सम्पूर्ण जीवन समाज कल्याण और देश सेवा के लिए समर्पित रहा। 13 सितंबर 1984 को उनका निधन हो गया और उन्हें ब्रह्मलीन घोषित किया गया। उनकी समाधि महाविद्यालय परिसर में बनाई गई है। उनके नाम से हमीरपुर जिले में विरमा नदी पर एक बाँध भी बनाया गया है, और उनके गांव में स्वामी ब्रह्मानंद मंदिर की स्थापना की गई है। उनके सम्मान में 1997 में भारत सरकार ने स्वामी ब्रह्मानंद जी पर एक डाक टिकट भी जारी किया।

स्वामी ब्रह्मानंद जी की पुण्य-तिथि पर हम उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लें और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें। उनका त्याग, समर्पण, और निस्वार्थ सेवा हम सभी के लिए एक आदर्श है।

आज, 13 सितंबर को, हम स्वामी जी को सादर नमन करते हैं और उनके महान कार्यों को याद करते हुए समाजसेवा और देशसेवा के लिए प्रेरित होते हैं। उनका जीवन हमेशा हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।

स्वामी ब्रह्मानंद जी की पुण्य-तिथि पर हम उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लें और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें। उनका त्याग, समर्पण, और निस्वार्थ सेवा हम सभी के लिए एक आदर्श है।

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