7 सितंबर 2024 को, समाज ने एक महान विभूति को खो दिया। महराज शिवपाल निषाद नाहर, जो निषाद संस्कृति को बढ़ाने और समृद्ध करने में जीवन भर समर्पित रहे, मुख के कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद स्वर्ग सिधार गए। उनके निधन से पूरे समाज में शोक की लहर दौड़ गई है, क्योंकि उन्होंने जीवनभर लोकसंस्कृति, संगीत और लोकगायन के माध्यम से निषाद समाज को प्रेरित किया।
शिवपाल निषाद नाहर का जीवन निषाद संस्कृति के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में बीता। वे न केवल एक कुशल संगीतकार और गायक थे, बल्कि समाज के सांस्कृतिक गौरव को सहेजने और आने वाली पीढ़ियों को उसकी महत्ता से अवगत कराने वाले प्रेरक भी थे। उन्होंने अपनी कला और संगीत के माध्यम से निषाद समाज के संघर्षों, परंपराओं, और गौरव को जीवित रखा और आगे बढ़ाया। उनका उद्देश्य था कि निषाद समाज की धरोहर और संस्कृति को भुलाया न जाए, बल्कि उसे और भी सशक्त रूप में समाज के सामने प्रस्तुत किया जाए।
मुख के कैंसर से पीड़ित होने के बावजूद महराज शिवपाल ने कभी अपने ध्येय से समझौता नहीं किया। उन्होंने हर कठिनाई का सामना करते हुए लोकगायन और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के जरिए समाज में जागरूकता फैलाई और लोगों को अपनी जड़ों से जुड़ने का संदेश दिया। अपने अंतिम दिनों तक वे अपनी कला और गायन से समाज को समर्पित रहे। उनके जीवन का यह संघर्ष और योगदान समाज के लिए एक प्रेरणा बनकर रहेगा।
उनके निधन से न केवल निषाद समाज, बल्कि पूरे देश ने एक ऐसा रत्न खो दिया है जिसकी पूर्ति कर पाना असंभव है। उनकी स्मृतियां और उनके द्वारा दिए गए अमूल्य योगदान हमेशा समाज के साथ रहेंगे। महराज शिवपाल निषाद नाहर का जीवन और संघर्ष एक उदाहरण है कि कैसे सांस्कृतिक धरोहरों को संजोना और बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी है।