कश्यप सन्देश

राजनीति का परिदृश्य: राम सिंह “राम” कश्यप की कलम से

राजनीति में राज बहुत है गहरे, लेकिन नीति नहीं होती,
गठबंधन सत्ता से हो, तो सत्य से प्रीति नहीं होती।

नारे दिन-रात देते रहते, रामराज हम लाएंगे,
कब तक और कैसे आएगा, राज नहीं बताएंगे।

जो संदेह से स्वयं ग्रसित हो, स्थिर नीति नहीं होती,
नेता गण भोली जनता को, सब्ज़ बाग दिखलाते रहते।

पंचशील के प्रबल पुजारी, पांच साल पछताते रहते,
स्वयं को जो श्रेष्ठ मानते, पर प्रतीति नहीं होती।

मंत्री बन ऐशो-आराम में रहते, लश्करों में चलते हैं,
सीता जैसी जनता को, रावण बनकर छलते हैं।

गिरगिट जैसा रंग बदलते, भय या भीति नहीं होती,
मनुष्य वही जो मन को जीते, वही राजा कहलाता है।

प्रजापति वही है जिसका, प्रजा से पावन नाता है,
संविधान, गणतंत्र नहीं तो, जन गण जीत नहीं होती।

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