कश्यप सन्देश

प्रेम बंसी बजाओ कन्हैया: राम सिंह कश्यप ‘राम’ की कलम से

फिर वो गीता सुनाओ कन्हैया, जिससे जग मोह निद्रा से जागे ।

प्रेम बंसी बजाओ सुरीली, गोपियां बनके संसार भागे।

पंच तत्वों के तुम प्राण बनके, इंद्रिय रूपी गौवें चराते ।
मन की माया का भाखन चुराते,कृष्ण गोपाल गोविंद कहाते।

साथ छूटे न मोहन मुरारी,प्रीति ऐसी अमिट तुमसे लागे,
फिर वो गीता सुनाओ कन्हैया, जिससे जग मोह निद्रा से जागे ।

भव के भ्रम जाल में हैं बिहारी जीव जड़ की तरह फंस गया है,
कामना की करोड़ कड़ी में, कस बन कष्ट से कस गया है ।

मुक्ति दो मोह से मन को मोहन।हम तेरे पुत्र, हम न अभागे,
हे दयालु परम न्याय कारी, सारथी बन चलो आगे आगे।

होके निर्भीक दम्भी दु:शासन,सत के सतीत्व को हर रहे हैं।

होके निर्भीक दम्भी दु:शासन,सत के सतीत्व को हर रहे हैं।

राष्ट्र नायक ही धृतराष्ट्र बनकर, दुर्जनों को अभय कर रहे हैं,
हे दयालु परम न्याय कारी, सारथी बन चलो आगे आगे।

प्रेमवशी सुनाओ सुरीली,जिससे जग मोह निद्रा से जागे।

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