कानपुर श्री सुखलाल निषाद जी द्वारा लिखित लेख में भारत में पाए जाने वाले मंदिर एवं तीर्थ स्थलों पर चढ़ने के रूप में एक मोटी रकम इकट्ठा होती है परंतु इस रकम का लेखा-जोखा क्या है किस काम में उपयोग में लाया जाता है इस पर भी सरकार से मंदिर के महंत वह मठाधीशों से इतनी बड़ी धनराशि का हिसाब किताब होना चाहिए भारत में भारत में करीब 6 लाख मंदिर हैं, आप उनकी आय का अंदाजा लगा सकते हैं। ऐसे मंदिरों में ट्रस्टी ज़्यादातर ब्राह्मण होते हैं। वे न तो महिलाओं को पुजारी बनाते हैं और न ही किसी दलित या आदिवासी को। इतना भेदभाव क्यों है?
भारत में कुछ मन्दिरों की एक महिना की कमाई के ये आंकड़े आपको सोचने को मजबूर कर देंगे-
- एक मां की कमाई तिरुपति बालाजी एक (1) हजार 325 करोड़ 2. वैष्णोंदेवी* 400 करोड़ 3. रामकृष्ण मिशन 200 करोड़ 4. जगनाथपुरी 160 करोड़
5.शिर्डी सांईबाबा* 100 करोड़ - द्वारकाधीश * 50 करोड़
- सिद्धी विनायक * 27 करोड़
- वैधनाथ धाम देवगढ 40 करोड़
- अंबाजी गुजरात40 करोड़
10.त्रावणकोर 35 करोड़
11 अयोध्या * 140 करोड़ - काली माता मन्दिर कोलकाता 250 करोड़ 13. पदमनाभन 5 करोड़
- सालासर बालाजी 300 करोड़
इसके अलावा भारत के छोटे बड़े मन्दिरों की सालाना आय 280 लाख करोड़ और भारत का कुल बजट 15 लाख करोड़ ।
- अगर हर आदमी इन मन्दिरों में चढावा ना चढाए और किसी गरीब असहाय की मदद करे तोभारत से गरीबी महज तीन साल मे हट सकती है।याद रहे भगवान तो केवल आपके प्रेम श्रद्धा भाव प्यार का भूखा है, उसे पैसे से नहीं खरीदा जा सकता।
- एक तरफ़ तो भगवान को दाता कहते हो दूसरी तरफ़ मंदिरो मे पैसे चढा कर उसी भगवान
को भिखारी बना रखा है। - वैसे भी आपके उस पैसे से भगवान नही पुजारी मौज उडा रहा है।* शेयर करे अगर आप सहमत है और भारत से गरीबी खत्म करना चाहते है।