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17 September 2024

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि वेदव्यास का जन्म निषाद कुल में हुआ था, जो उनके महान व्यक्तित्व और कृतित्व को और भी गरिमा प्रदान करता है। महर्षि वेदव्यास की माता सत्यवती निषाद कन्या थीं, और उनके पिता महर्षि पराशर थे। इस तरह महर्षि वेदव्यास का जीवन और कृतित्व न केवल निषादों के लिए गर्व का विषय है, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए भी एक अमूल्य धरोहर है।

महर्षि वेदव्यास का जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था, जिसके कारण उनका नाम कृष्ण द्वैपायन रखा गया। जन्म के समय उनका वर्ण श्याम था, इसलिए उन्हें ‘कृष्ण’ भी कहा गया। उनका जीवन एक अद्वितीय यात्रा थी, जिसने मानव सभ्यता के धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर को समृद्ध किया।

महर्षि वेदव्यास ने अपने जीवनकाल में वेदों का विस्तार और विभाजन किया, जिसके कारण उन्हें ‘वेदव्यास’ के नाम से ख्याति मिली। उन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित किया—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद—ताकि सामान्य लोग भी इसे समझ सकें और इसका लाभ उठा सकें। इसके साथ ही, महर्षि वेदव्यास ने महाभारत, श्रीमद्भागवतम् और अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनसे भारतीय संस्कृति और धर्म को एक मजबूत आधार मिला।

महाभारत की रचना में महर्षि वेदव्यास का योगदान अतुलनीय है। वे न केवल इस महाकाव्य के रचयिता थे, बल्कि इसके प्रमुख पात्र भी थे। उन्होंने स्वयं भगवान गणेश को महाभारत की कथा सुनाई, जिसे गणेश जी ने लिपिबद्ध किया। इस प्रकार, महर्षि वेदव्यास विश्व के पहले आशुवक्ता (डिक्टेटर) कहलाए, और गणेश जी पहले आशुलिपिक (स्टेनोग्राफर)।

महर्षि वेदव्यास के अन्य महत्वपूर्ण योगदानों में श्रीमद्भागवतम् का उल्लेख विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस ग्रंथ में भक्ति, ज्ञान और धर्म के तत्वों को विस्तार से समझाया गया है। उनके पुत्र शुकदेव ने इस ग्रंथ को राजा परीक्षित को सुनाया था, जिससे उन्हें मृत्यु के श्राप से मुक्ति मिली।

महर्षि वेदव्यास का जीवन रहस्यमय और चमत्कारी था। उनका जन्म नेपाल के तानहु जिले के दमौली में हुआ माना जाता है, और जिस गुफा में उन्होंने महाभारत की रचना की, वह आज भी वहां स्थित है। वे भगवान विष्णु के 18वें अवतार माने जाते हैं, और त्रेता युग के अंत से लेकर द्वापर युग के समापन तक जीवित रहे। महाभारत युद्ध की आहट को उन्होंने दुर्योधन के जन्म के साथ ही महसूस कर लिया था, और उनकी कृपा से ही धृतराष्ट्र के सारथी संजय को दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई थी।

महर्षि वेदव्यास ने न केवल महाभारत की रचना की, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे, जो उस युग में घटित हुईं। उनका आश्रम हस्तिनापुर की समस्त गतिविधियों का केंद्र था, जहां से वे सभी घटनाओं पर अपना मार्गदर्शन प्रदान करते थे।

महर्षि वेदव्यास का साहित्यिक योगदान इतना विशाल है कि उन्हें वाल्मीकि के बाद संस्कृत साहित्य का सबसे महान कवि माना जाता है। उनके लिखे हुए काव्य ‘आर्ष काव्य’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। महाभारत के माध्यम से उन्होंने इस भौतिक जीवन की निस्सारता को प्रस्तुत किया और मानव जीवन के मूल्यों को समझाने का प्रयास किया।

महर्षि वेदव्यास का जीवन और कृतित्व न केवल निषादों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। उनके योगदान को सदियों तक याद रखा जाएगा और वे हमेशा भारतीय संस्कृति के महानतम व्यक्तित्वों में से एक रहेंगे।

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