उत्तर प्रदेश के मछुवारा समुदाय की आर्थिक स्थिति आज खस्ता है। यह स्थिति सिर्फ वर्तमान की नहीं, बल्कि इतिहास के गहरे जख्मों का परिणाम है। अगर हम इस समुदाय की दुर्दशा के पीछे के कारणों की पड़ताल करें, तो हमें ब्रिटिश शासनकाल से लेकर स्वतंत्र भारत तक की घटनाओं को समझना होगा।
ब्रिटिश शासनकाल और मछुवारे
1826 ईस्वी में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मछुवारों ने पहला “काम रोको आंदोलन” (जो आज के धरना प्रदर्शन जैसा था) छेड़ा। इसका मुख्य कारण ब्रिटिश सरकार की नीति थी, जिसमें मछुवारों को माल ढुलाई की मजदूरी केवल एकतरफा दी जाती थी। मछुवारे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खड़े हुए और अपनी मांगों को मनवाने में सफल हुए। यह आंदोलन इस बात का प्रमाण था कि उस समय मछुवारों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति अच्छी थी। लेकिन, यह स्थिरता लंबे समय तक नहीं चली।
सत्तावनी क्रांति और मछुवारों की भूमिका
1857 की सत्तावनी क्रांति में मछुवारे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। जब ब्रिटिश सेना ने कानपुर से इलाहाबाद किले पर कब्जा करने के लिए जलमार्ग से यात्रा की, तब मछुवारों ने इस योजना को नाकाम कर दिया। फतेहपुर की सीमा में उन्होंने ब्रिटिश सेना की नौ टुकड़ियों को गंगा नदी में डुबो दिया। इस वीरता का बदला ब्रिटिश सरकार ने मछुवारों का कत्लेआम करके लिया। इसके बाद, 1875 में एक कमीशन बनाया गया जिसने मछुवारों को “आपराधिक कृत्य करने वाली जाति” के रूप में चिन्हित किया और उनके भूमि अधिकार छीन लिए। इनकी भूमि की श्रेणी बदल दी गई, जिससे वे अपनी जमीन के मालिक नहीं बन सकते थे। ये कानून आज भी मछुवारों पर लागू हैं।
स्वतंत्र भारत में मछुवारों की स्थिति
स्वतंत्रता के बाद, भारत ने भूमि सुधार अधिनियम 1950 के तहत ज़मींदारों से ज़मीनें वापस लीं और उन्हें समाज के कमजोर वर्गों में बांटा। लेकिन मछुवारों को उनकी परंपरागत भूमि ही दी गई, जिस पर ब्रिटिश काल के कानून अब भी लागू थे। इस कारण, मछुवारे अपनी भूमि के मालिक नहीं बन पाए। इस अन्यायपूर्ण बंटवारे में मछुवारे न तो भूमिहीन रहे और न ही मालिक बने। 2002 में उनकी बची-खुची भूमि से भी उन्हें बेदखल कर दिया गया।
राजस्व संहिता संशोधन और मछुवारों की और उपेक्षा
2006 और 2016 में राजस्व संहिता में संशोधन के बावजूद, मछुवारों की हालत में सुधार नहीं हुआ। अन्य समाजों को जलौनी, चरागाह और वंजर भूमि का मालिक बनाया गया, जबकि मछुवारे अब भी भूमि अधिकारों से वंचित हैं।
आज जब देश स्वतंत्रता का अमृत काल मना रहा है, मछुवारों की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चेतना का अभाव है। यह समाज समाजवादी सिद्धांतों से बहुत दूर है। इस लेख का उद्देश्य मछुवारों की खस्ता माली हालत के पीछे के ऐतिहासिक और वर्तमान कारणों को उजागर करना है। लेखक उम्मीद करता है कि पाठक मछुवारों की इस स्थिति के लिए जिम्मेदार लोगों से सवाल अवश्य करेंगे।