लगातार अभ्यास से एकलव्य ने धनुर्विद्या में अपार निपुणता प्राप्त की। एक दिन, जब पांडव और कौरव गुरु द्रोण के साथ शिकार करने जंगल पहुंचे, उनके साथ एक कुत्ता भी था। वह कुत्ता एकलव्य के आश्रम में जा पहुंचा और भौंकने लगा। एकलव्य ने अपने बाणों से बिना चोट पहुंचाए कुत्ते का मुंह बंद कर दिया। धनुर्विद्या के इस अद्वितीय कौशल को देख गुरु द्रोणाचार्य चकित रह गए और एकलव्य के पास पहुंचे।
गुरु द्रोण को लगा कि एकलव्य अर्जुन से श्रेष्ठ धनुर्धर बन सकता है। इस भय से उन्होंने गुरु दक्षिणा में एकलव्य से उसका दायां अंगूठा मांग लिया। अंगूठा कटने के बावजूद, एकलव्य ने हार नहीं मानी और तर्जनी और मध्यमा अंगुली का उपयोग कर तीर चलाने लगा। यह तकनीक तीरंदाजी के आधुनिक तरीके का जन्म थी।
एक प्रचलित कथा के अनुसार, एकलव्य श्री कृष्ण के शत्रु जरासंध के साथ मिल गया और मथुरा पर आक्रमण कर दिया। उसने यादव सेना के अधिकांश योद्धाओं को मार दिया। श्री कृष्ण जानते थे कि यदि एकलव्य जीवित रहा, तो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ते हुए पांडवों के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। अंततः, श्री कृष्ण और एकलव्य के बीच एक भीषण युद्ध हुआ जिसमें एकलव्य वीरगति को प्राप्त हुआ।
इस प्रकार, एकलव्य ने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति और संकल्प से इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी, जिससे न केवल तीरंदाजी के नए तरीके का जन्म हुआ, बल्कि उसकी महानता और बलिदान की कथा आज भी हमें प्रेरित करती है।