एकलव्य, अप्रतिम लगन और गुरु भक्ति के लिए जाने जाते हैं। पिता हिरण्यधनु की मृत्यु के बाद, वह श्रृंगवेर राज्य के शासक बने। अमात्य परिषद की मंत्रणा से उन्होंने निषादों की एक सशक्त सेना गठित की और सीमाओं का विस्तार किया।
महान धनुर्धर एकलव्य ने स्वयं श्री कृष्ण का भी ध्यान आकर्षित किया। श्री कृष्ण ने कहा था कि यदि उसका अंगूठा सुरक्षित होता, तो देवता, दानव, राक्षस और नाग, सभी मिलकर भी उसे युद्ध में परास्त नहीं कर पाते।
महाभारत में एकलव्य को निषाद राजकुमार बताया गया है। आचार्य द्रोण ने उसे शिक्षा देने से मना कर दिया, तब एकलव्य ने मिट्टी से द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाकर नियम पूर्वक धनुर्विद्या का अभ्यास करना शुरू किया। उसकी लगन और तपस्या ने उसे महान योद्धा बना दिया।
एकलव्य ने अपने कौशल और वीरता से निषादों को सशक्त और स्वावलंबी बनाया। उन्होंने अपने राज्य को शांति और समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर किया। उनका अद्वितीय समर्पण और संघर्ष का यह किस्सा आज भी लोगों को प्रेरित करता है।
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