ए. के. चौधरी की कलम से
सनातन धर्म के अनुसार, प्रत्येक महीने के एकादशी तिथि को भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन को अत्यंत पवित्र माना जाता है, और भक्तगण व्रत रखते हैं। यह व्रत भगवान श्री हरि विष्णु को बहुत प्रिय है और मानव समाज के लिए यह व्रत अत्यधिक महत्वपूर्ण और पुण्यकारी माना गया है।
प्राचीन काल में, कई देश और गांव थे जहां के राजा का आदेश होता था कि सभी को एकादशी का व्रत करना अनिवार्य है। ऐसा इसलिए ताकि समाज और देश पर कभी भी कोई संकट ना आए और सभी को भगवान श्री हरि की कृपा प्राप्त हो सके।
कहानी का आरंभ तब होता है जब भगवान श्री हरि विष्णु ने सृष्टि की रचना की। रचना के साथ ही पाप भी उत्पन्न हुआ, और उन्हीं पापों से “पाप पुरुष” की रचना हुई। यमराज जी का जन्म हुआ ताकि सभी पापियों को नर्क में दंडित किया जा सके। जब भगवान ने देखा कि लोग पाप करने में आसानी महसूस करते हैं और उन्हें नरक में दंडित होना पड़ता है, तो भगवान को दया आ गई।
तब भगवान ने अपने शरीर से “एकादशी माता” को प्रकट किया। एकादशी माता की कृपा से पापी लोग यमराज के दंड से बच सकते थे। भगवान ने इस तिथि का नाम “एकादशी” रखा क्योंकि यह तिथि 11वें दिन प्रकट हुई थी। वैदिक गणना के अनुसार, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में प्रत्येक 11वें दिन को एकादशी कहते हैं, और इस तरह हर महीने में दो बार एकादशी आती है।
जब एकादशी व्रत के प्रभाव से पाप कम होने लगे, तब पाप पुरुष ने भगवान से शिकायत की कि एकादशी व्रत के कारण लोग पाप नहीं कर रहे हैं, और जिससे उनका ह्रास हो रहा है। भगवान ने कहा कि तुम एकादशी के दिन अन्न के अंदर प्रवेश कर जाओ, और उस दिन तुम्हारा बचाव हो जाएगा। इसलिए, एकादशी के दिन सारे पाप अन्न के अंदर चले जाते हैं। अगर हम उस दिन अन्न का सेवन नहीं करते, तो पाप से बचे रहते हैं।
भक्तों को चाहिए कि वे इस विशेष व्रत को अवश्य रखें। इस दिन हरे राम, हरे कृष्ण मंत्र का जाप कर भगवान की कृपा प्राप्त करें और अपनी आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करें। अन्य व्रत रखें या ना रखें, लेकिन एकादशी व्रत अवश्य रखना चाहिए। यह व्रत न केवल पाप से बचाव करता है, बल्कि भगवान की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है और हमारे आध्यात्मिक जीवन में प्रगति होती है।
अगले अंक में…