मुझे मत भूल ऐ बंदे – मैं हर एक दिल में रहता हूँ।
मैं ही कण-कण, मैं ही क्षण-क्षण – मैं ही तिल-तिल में रहता हूँ।
वहीं मैंने दिया उसको जो उसने मुझसे माँगा है,
असत् अज्ञान (आभिमान) ने ही सत्य को शूली पे टाँगा है।
न रहता हाशिये पर, हौसले हासिल में रहता हूँ,
मुझे मत भूल ऐ बंदे – मैं हर एक दिल में रहता हूँ।
तुम्हारा और मेरा हर जनम हर युग से नाता है,
मैं इसको याद रखता हूँ, तू इसको भूल जाता है।
नारायण भाव से ही अज व अजामिल में रहता हूँ,
मुझे मत भूल ऐ बंदे – मैं हर एक दिल में रहता हूँ।
मेरे मंदिर मेरे मस्जिद, मेरे गिरजा शिवाले हैं,
मेरे रहने और होने के अनोखे ढंग निराले हैं।
मैं ही गीता, रामायण, वेद और बाइबिल में रहता हूँ,
मुझे मत भूल ऐ बंदे – मैं हर एक दिल में रहता हूँ।
किसी का दिल दुखाए जो, वो दिल का चैन खोता है,
जो दर्द दिल समझता है, वही हम दर्द होता है।
मैं योगी ज्ञानी ध्यानी, मनचले गाफिल में रहता हूँ,
मुझे मत भूल ऐ बंदे – मैं हर एक दिल में रहता हूँ।
कोई कितना पारंगत हो न मेरा पार पाएगा,
कोई कितना भी शातिर हो न भुक्तों भेद पाएगा।
मैं ही हाकिम, मैं फरियादी, मैं ही कातिल में रहता हूँ,
मुझे मत भूल ऐ बंदे – मैं हर एक दिल में रहता हूँ।
ये दुनिया स्वप्न के मानिंद है जो जान लेता है,
वो बेफिक्री की चादर अपने सर पर तान लेता है।
जहाँ मेरा जिक्र रहता है, मैं उसी महफिल में रहता हूँ,
मुझे मत भूल ऐ बंदे – मैं हर एक दिल में रहता हूँ।
लेखक: राम सिंह कश्यप “राम”, किदवई नगर, कानपुर
9305652648