कानपुर नगर से बीके लोधी जी द्वारा लोकसभा 2024 के चुनाव का विश्लेषण कर अपना विचार व्यक्त करते बताया कि परंपरागत रूप से लोधी जनसंघ के समय से भारतीय जनता पार्टी के पूर्ण वैभव काल तक निष्ठावान मतदाता रहे हैं। उत्तर प्रदेश में परिवार रजिस्टर के आंकड़ों के अनुसार इनकी आबादी 6.9 फीसदी है, जिसे मीडिया जानबूझकर कमतर दिखाता रहा है। लोधी जन लोकसभा की 25 से अधिक सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। भाजपा ने लोधियों की निष्ठा का बेजा फायदा उठाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। उत्तर प्रदेश में 18 लोधी विधायकों में से केवल एक को कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रधानमंत्री और किसी भी नेता द्वारा हिंदू हृदय सम्राट कल्याण सिंह के योगदान का जिक्र तक न करना न केवल लोधी बिरादरी वल्कि ओबीसी की अन्य जातियों को मर्माहत कर गया। प्राण प्रतिष्ठा की निमंत्रण पत्रिका में तमाम लोगों के योगदान का भरपूर जिक्र किया गया, जिन्हें लोग जानते भी नहीं हैं, लेकिन उमा भारती, कल्याण सिंह और साक्षी महाराज के योगदान को निष्ठुरता पूर्वक नकार दिया गया। राममंदिर निर्माण ट्रस्ट में भी लोधी व ओबीसी नदारद हैं।
लोधी बाहुल्य कन्नौज लोकसभा में वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी की मूर्ति को चुनाव के पूर्व शासन ने हटा कर लोधियों का घोर अपमान किया। विवाद बढ़ा तो मूर्ति स्थापित की गयी लेकिन वहां के घनघोर घमंडी सांसद सुब्रत पाठक ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि आपने हमें वोट नहीं दिया बल्कि उन्होंने लोधी राजपूतों के वोटों को खरीदा है। सुब्रत पाठक के इस निंदनीय बयान के बाद उम्मीद यह थी कि भाजपा हाईकमान कन्नौज से पाठक की उम्मीदवारी रद्द कर देगा। किंतु भाजपा ने ऐसा नहीं किया। लोधियों ने कहा भी कि यदि सुब्रत पाठक की उम्मीदवारी रद्द नहीं की जाती है, तो यह समझा जाएगा कि लोधियों के प्रति सुब्रत पाठक का अपमान जनक बयान भाजपा का ही बयान है। और लोधी न केवल कन्नौज में बल्कि हर सीट पर भाजपा को पटखनी देंगे।
भाजपा के परंपरागत मतदाता लोधियों ने हर क्षेत्र में अपनी उपेक्षा और टिकट वितरण में कोताही के मद्देनजर अपनी छाती पर पत्थर रखकर भाजपा को अभी लोकसभा चुनाव में सबक सिखाया है। यह सिलसिला यहीं रुकने वाला नहीं है। इस बगावत का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा। यूं तो भाजपा दलित और ओबीसी विरोधी है, लेकिन अब वह लोधी विरोधी भी हो चुकी है। लोधियों को को न तो विधान परिषद और न ही राज्यसभा का सदस्य बनाया गया। विपरीत चुनाव परिणाम के बाद सूबे के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जी ने आनन-फानन में विभागों के रिक्त पदों को भरने का हवाई हवाई ऐलान कर दिया है, लेकिन पूर्व भर्ती परीक्षाओं के परिणाम की घोषणा बेवजह रोक रखी है। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के सभी बीस पद जानबूझकर खाली रखें गये हैं। अन्य बोर्डों व निकायों का भी कमोबेश यही हाल है। ऐसा पहली बार हुआ है कि एससी, एसटी, विमुक्त जातियों के लिये बनी विधायकों की संयुक्त समिति में आधे विधायक अगड़ी जातियों के हैं। जस्टिस राघवेन्द्र कमैटी ने लोधियों को सर्वाधिक पिछड़ा माना है। लोधी डिनोटिफाइड ट्राइब्स की सूची में हैं, लेकिन उनके किसी भी विधायक को संयुक्त समिति में जगह नहीं दी गयी। भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक हो रहे हैं। अभ्यर्थी ओबीसी होने का खामियाजा भुगत रहे हैं। सुदामा कोटा वालों से अधिक मार्क्स प्राप्त करने के बावजूद उन्होंने नॉट फाउंड सूटेबल करार देकर नियुक्ति से वंचित किया जा रहा है।
भाजपा ने घमंड में अपने एक मुश्त परंपरा गत वोट बैंक (लोधियों) को बागी बना दिया। फिलहाल यह बगावत थमने वाली नहीं है। लोधियों के सामाजिक मूल्य ही ऐसे हैं कि वे समर्थन या विरोध जो भी करते हैं, दिल ओ जान से करते हैं। बहरहाल बहुत किया सम्मान। अब आजिज हुये किसान।।
आकाश लोधी