बात कुछ ऐसी करो जिससे बात बन जाए,
बात ऐसी ना करो जिससे रार ठन जाए।
है कोई गैर नहीं जिससे बैर करता है,
प्रेम करने से ही रंग, रूप, गुण निखरता है।
मन में वह भाव भरे, मन ही सुमन हो जाए,
बात ऐसी ना करो जिससे रार ठन जाए।
कोई हिंदू, न मुसलमान, सिख न ईसाई,
इसी एक सत्य की चारों तरफ छवि छाई।
जिसने यह जान लिया, उसका बाकपन जाए,
बात ऐसी ना करो जिससे रार ठन जाए।
जिससे हर के हरी से जोड़ लिया नाता है,
सदैव सम हो, एकता के गीत गाता है।
राम, यीशु, मोहम्मद, नानक बन जाए,
बात ऐसी ना करो जिससे रार ठन जाए।
धर्म हुए बीज हैं, जिसमें है सर्व की सत्ता,
वही है मूल, डाल, फूल, फल, वही पत्ता।
करें जो चाहे जैसा, वैसे ही तन में तन जाए,
बात ऐसी ना करो जिससे रार ठन जाए।
यह दुनिया बीते हुए वक्त का फसाना है,
हुई जो गलतियां, उसको नहीं दोहराना है।
कर तस्वीर वह कि जिससे अमन हो जाए,
बात ऐसी ना करो जिससे रार ठन जाए।