उपवास भारतीय समाज और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। सदियों से हमारे देश में स्त्री, पुरुष, वृद्ध, युवा सभी उपवास की इस परंपरा का पालन करते आ रहे हैं। उपवास का सीधा तात्पर्य भोजन का त्याग करना है, लेकिन इसके पीछे कई आध्यात्मिक और शारीरिक कारण भी छिपे हैं। उपवास करने से न केवल हमारा शरीर शुद्ध होता है, बल्कि हमारी मानसिक और आत्मिक शक्ति भी बढ़ती है। परंतु, आज के परिप्रेक्ष्य में सवाल यह उठता है कि क्या केवल अन्न का उपवास पर्याप्त है, या हमें अन्य बुराइयों का भी त्याग करना चाहिए?
उपवास का वास्तविक अर्थ तभी पूरा होगा जब हम अपने भीतर छिपी बुराइयों को दूर करने का संकल्प लें। जिस प्रकार उपवास के बाद शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है, उसी प्रकार यदि हम मानसिक बुराइयों का त्याग करेंगे, तो हमारे जीवन में प्रेम, सहानुभूति, और भाईचारे का विकास होगा। हमारे समाज में अन्न और जल का उपवास करना तो वर्षों से चला आ रहा है, परंतु इस उपवास का वास्तविक उद्देश्य तब पूर्ण होता है जब हम मानसिक और नैतिक शुद्धि की दिशा में भी कदम उठाएं।
“जब हम उपवास करते हैं और अन्न का त्याग करते हैं, तो हमारे शरीर को आंतरिक क्रियाओं में विश्राम मिलता है। हमारे पाचन तंत्र को एक प्रकार का अवकाश प्राप्त होता है, जिससे शरीर के भीतर सफाई की प्रक्रिया और भी प्रभावी हो जाती है। यह शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी है। परंतु, क्या हमने कभी सोचा है कि इसी प्रकार हमारे मन और आत्मा को भी विश्राम की आवश्यकता है?” उपवास केवल भौतिक शरीर के लिए नहीं होना चाहिए। जब हम अन्न का त्याग करते हैं, तब हमारी आत्मा और मन भी शुद्धि की अपेक्षा रखते हैं। उपवास के दिन हमें न केवल अन्न का त्याग करना चाहिए, बल्कि ईर्ष्या, क्रोध, घृणा, अहंकार, और अन्य नकारात्मक भावनाओं का भी त्याग करना चाहिए।
समाज में आजकल अनेक प्रकार की समस्याएँ व्याप्त हैं। पड़ोसी से झगड़े, भाई-भाई के बीच विवाद, माता-पिता और संतान के बीच दूरियाँ, पति-पत्नी के रिश्ते में तनाव—इन सभी समस्याओं का मूल कारण मानसिक और भावनात्मक असंतुलन है। मनोज कुमार कहते हैं, “अन्न के उपवास के साथ हमें अपने मन के भीतर छिपी इन बुराइयों का भी उपवास रखना चाहिए। केवल तभी हमारा उपवास वास्तविक अर्थों में सफल हो सकता है।
उपवास का वास्तविक अर्थ तभी पूरा होगा जब हम अपने भीतर छिपी बुराइयों को दूर करने का संकल्प लें। जिस प्रकार उपवास के बाद शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है, उसी प्रकार यदि हम मानसिक बुराइयों का त्याग करेंगे, तो हमारे जीवन में प्रेम, सहानुभूति, और भाईचारे का विकास होगा। हमें अपने समाज में एक नई परंपरा की शुरुआत करनी चाहिए, जिसमें अन्न के उपवास के साथ-साथ बुराइयों का भी उपवास हो। केवल तभी हम शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्तर पर पूर्ण शुद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
आज के दौर में, जब समाज में तनाव और अविश्वास बढ़ रहे हैं, यह आवश्यक है कि हम इन मानसिक बुराइयों को अपने जीवन से बाहर करें। अन्न का उपवास हमें शारीरिक लाभ देता है, लेकिन बुराइयों का उपवास हमें मानसिक शांति और सामाजिक सौहार्द्र की दिशा में अग्रसर करता है।इस प्रकार के उपवास के साथ-साथ यदि हम मानसिक और नैतिक बुराइयों का भी त्याग करेंगे, तो न केवल हमारा उपवास सफल होगा, बल्कि समाज में भी प्रेम, सहयोग, और भाईचारे की भावना मजबूत होगी। यही हमारे उपवास का असली उद्देश्य होना चाहिए।