निषाद वंश के राजा उत्तानपाद, श्री स्वयंभू मनु और माता शतरूपा के पुत्र थे। अयोध्या नगरी के राजा उत्तानपाद की दो पत्नियां थीं—सुनीति और सुरुचि। सुनीति का पुत्र ध्रुव और सुरुचि का पुत्र उत्तम था।
एक दिन ध्रुव खेलते-खेलते अपने पिता की गोद में बैठ गया। तभी उसकी सौतेली मां, रानी सुरुचि ने उसे गोद से नीचे उतारते हुए कहा, “यदि तुम्हें अपने पिता की गोद में बैठना है, तो पहले मेरी कोख से जन्म लेना होगा।” इस बात से ध्रुव का बालमन आहत हो गया और वह रोता हुआ अपनी मां, रानी सुनीति के पास पहुंचा। उसने अपनी मां को सारी बातें बता दीं।
मां सुनीति ने ध्रुव को समझाया, “बेटा! यह राजगद्दी तो नश्वर है। तुम भगवान का दर्शन करके शाश्वत गद्दी प्राप्त कर सकते हो।” मां की इस सीख ने ध्रुव के मन में गहरी छाप छोड़ी, और उसने ठान लिया कि वह भगवान का दर्शन करके शाश्वत गद्दी प्राप्त करेगा।
ध्रुव ने दृढ़ निश्चय किया और तपस्या करने के लिए जंगल की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे कई हिंसक पशु भी मिले, लेकिन वह निडर होकर आगे बढ़ता गया। कुछ देर बाद, ध्रुव की भक्ति और दृढ़ संकल्प को देखकर देवर्षि नारद उसके पास आए। उन्होंने पांच वर्ष के छोटे बालक को घने जंगल में देखकर आश्चर्य व्यक्त किया और उससे वहां आने का कारण पूछा। ध्रुव ने नारद जी को अपने घर में हुई सारी बातें बताईं और भगवान को पाने की तीव्र इच्छा प्रकट की।
नारद जी ने ध्रुव से कहा, “तू बहुत छोटा है, और यह जंगल बहुत भयानक है। तू ठंडी, गर्मी और बरसात को सहन नहीं कर पाएगा। इसलिए बेहतर होगा कि तू घर वापस लौट जा।” परंतु ध्रुव ने नारद जी की बात नहीं मानी और दृढ़ निश्चय के साथ तपस्या पर अडिग रहा। उसकी इस अटूट इच्छाशक्ति को देखते हुए, नारद जी ने उसे “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र दिया और आशीर्वाद दिया, “बेटा! श्रद्धा से इस मंत्र का जाप करना। भगवान अवश्य प्रसन्न होंगे।”
ध्रुव ने नारद जी के आशीर्वाद से कठोर तपस्या शुरू कर दी। वह एक पैर पर खड़ा होकर ठंडी, गर्मी और बारिश की परवाह किए बिना मंत्र का जाप करता रहा। उसकी अडिगता और कठोर तपस्या से भगवान नारायण स्वयं प्रकट हो गए और बोले, “ध्रुव, मैं तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हूँ। मांगो, तुम्हें क्या चाहिए?”
ध्रुव भगवान को देखकर आनंद से विभोर हो गया और उन्हें प्रणाम करते हुए बोला, “हे भगवान! मुझे आपकी दृढ़ भक्ति चाहिए, इसके अलावा मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।”
भगवान नारायण ध्रुव की इस निःस्वार्थ भक्ति से अत्यधिक प्रसन्न हुए और बोले, “तथास्तु! तुम्हें मेरी भक्ति तो मिलेगी ही, साथ ही मैं तुम्हें एक और वरदान देता हूँ। आकाश में एक तारा तुम्हारे नाम से ‘ध्रुव तारा’ के रूप में सदैव चमकेगा। यह तारा दुनिया के लिए दृढ़ निश्चय का प्रतीक रहेगा और लोग तुम्हें सदा याद रखेंगे।”
आज भी आकाश में ध्रुव तारा चमकता है, जो ध्रुव की दृढ़ निष्ठा और तपस्या की गाथा को जीवंत रखता है।
आज भी, ध्रुव तारा आकाश में चमकता हुआ निषाद वंश के ध्रुव की महिमा और गौरव का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाता है कि सच्ची निष्ठा और दृढ़ संकल्प के साथ कोई भी व्यक्ति असंभव को संभव बना सकता है। ध्रुव की यह कहानी हमारे महान इतिहास का गर्व और प्रेरणा का स्रोत है, जिसे हम आज भी गर्व से याद करते हैं।