कश्यप सन्देश

समतामूलक और भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र की परिकल्पना: सर्वेश कुमार “फिशर” की कलम से

हम कर्मकार समाज के लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हमारे जीवन की तमाम तकलीफें न तो किस्मत की देन हैं, न ही भगवान की। हमारे दुःख का असली कारण है- वर्तमान में जन्म के आधार पर होने वाला आर्थिक भेदभाव, जो हमारे कानूनों में गहराई से जड़ जमाए हुए है।

हमारे कानून में केवल जन्म को महत्व दिया जाता है, कर्म को नहीं। यही कारण है कि आज के समय में हर व्यक्ति शॉर्टकट से अमीर बनने की होड़ में लगा है। इस गलत व्यवस्था के कारण, जो व्यक्ति अरबपति के घर में जन्म लेता है, वह बिना किसी मेहनत के अरबपति बना रहता है। इस तरह के कानूनों ने कुछ मुट्ठी भर लोगों को ही राष्ट्र की समृद्धि और संसाधनों पर कब्जा करने का मौका दिया है। मशीनों से उत्पादित या साझा धन पर वे लोग अपना अधिकार जमा लेते हैं, जबकि मेहनत करने वालों के हिस्से में बेहद कम आता है। वे कैसे ज्यादा कमाएं, जब उनका हिस्सा जन्म से ही उनसे छीन लिया जाता है?

खेतीहर मजदूर की कड़ी मेहनत से कच्चे माल का उत्पादन होता है, देहाड़ी मजदूरों की मेहनत से फैक्ट्रियां चलती हैं, और मछुवारों की जान जोखिम में डालकर की गई मेहनत से समुद्रों में मछली का उत्पादन होता है। यह सब मिलकर राष्ट्र की सकल आय का हिस्सा हैं। इसलिए, यह आवश्यक है कि हर व्यक्ति को केवल उसके कर्म के आधार पर अमीर या गरीब बनाया जाए, जन्म के आधार पर नहीं।

ऐसे कानूनों से न केवल लोगों को आर्थिक समानता का लाभ मिलेगा, बल्कि वे आर्थिक गुलामी की बेड़ियों से भी मुक्त हो जाएंगे।

सभी लोगों के पूर्वजों को एक समान सम्मान मिले, चाहे वे किसी भी जाति या वर्ग से हों। हमें ऐसा कानून बनाना चाहिए जो साझा पूर्वजों की संपत्ति को किराए पर उठाए और इस किराए की राशि को वर्तमान पीढ़ी के सभी नागरिकों में समान रूप से बांटा जाए, ताकि राष्ट्र की औसत आय और क्रय शक्ति का कम से कम आधा हिस्सा हर नागरिक को मिले।

धर्म, अर्थ, कर्म और मोक्ष के सिद्धांत का साकार रूप समाज में तभी स्थापित होगा, जब प्रत्येक व्यक्ति कर्म के आधार पर अमीर-गरीब बने, जन्म के आधार पर नहीं।

निर्णायक स्थिति: राष्ट्र की साझा संपत्ति से उत्पन्न सकल औसत आय का हिस्सा या भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आधा भाग प्रत्येक व्यक्ति को नियमित कर्म के आधार पर वेतन के रूप में मिलना चाहिए। बाकी आधी राशि सरकार के विकास कार्यों और कर्म प्रेरक कोष के लिए कर के रूप में संरक्षित की जाए। ऐसी नीतियों से जातिगत भेदभाव, ऊंच-नीच, छुआछूत, भ्रूण हत्या, नारी हिंसा जैसी बुराइयों का अंत होगा, और समाज में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चेतना से समतामूलक समाज और भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र का निर्माण होगा।

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