कश्यप सन्देश

27 December 2024

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बड़े भाई छोटे भाई का हक खाएंगे तो  समाज में समानता कैसे आएगी

जेरेबहस- बीके लोधी(बृजेंद्र मेहतों)
क़त्ल हुआ हमारा इस तरह से किस्तों में कि,
कभी खंजर बदल गये, कभी कातिल बदल गये।

कानपुर एससी और एसटी के उपवर्गीकरण के पक्ष में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय पर भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के पूर्व वरिष्ठ अध्येता डॉ बीके लोधी के विचार।
उपवर्गीकरण के बिना एससी एसटी के वंचित समुदायों को कभी भी शासन-प्रशासन में भागीदारी नहीं मिल सकेगी। ये तर्क़ बेमानी है कि उपवर्गीकरण से एससी और एसटी के अंतर्गत आने वाली जातियों में भाईचारा समाप्त हो जायेगा। वास्तविकता यह है कि जब तक बड़ा भाई छोटे भाई का सारा चारा हड़पता रहेगा तो भाईचारा पैदा ही नहीं होगा।
हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पुरजोर समर्थन करते हैं और भारत बंद का विरोध करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए ताकि एससी, एसटी की सर्वाधिक वंचित विमुक्त और घुमंतू जातियों जैसे – सांसी, सपेरा, सहारिया, नट, कंजर, कुचबंदिया, पेरना, गंदीला, अहेरिया, बहेलिया, कनमैलिया, लोनाचमार, खुरपल्टा, कलंदर, महावत, मदारी, मुसहर, धानुक, डोमारमादिगा, चक्कीलिया, अरंथुथियार, बहरुपिया बेड़िया, कोल, भील, मीना (मीणा नहीं, जो अभी तक साजिशन मीना बनकर एसटी का सारा कोटा हड़पे जा रहे हैं), बदक / बधिक, बसोर, बांसफोड़, मेहतर, भांतू, कालबेलिया, हबूड़ा, डोम, बिरहोर, बावरिया, पारधी, सबर, खेड़िया आदि जातियों को उनका हिस्सा मिले।
एससी एसटी की क्रीमीलेयर्ड हो चुकी जातियों को चाहिये अपने छोटे भाइयों का हिस्सा उनको मिलने दें। तभी एकता कायम रहेगी। ये मूक समुदाय हैं। अपनी मांग आपकी तरह बुलंद नहीं कर सकते। जो एससी और एसटी के मलाईदार तबके यह कुतर्क पेश करते हैं कि अभी एससी, एसटी के सभी पद भरे ही नहीं गये हैं, तो उपवर्गीकरण की बात बेमानी है। काश इन कुतर्कियों ने यह कहा होता एससी, एसटी के खाली पड़े पदों का बैकलॉग अति दलित और वंचित आदिवासी/ जनजातियों से भरा जाय तो समझ में आता कि आप वाकई विकास की धारा में पीछे छूट गये सभी एससी एसटी के शुभ चिंतक हैं। आपने तो उन्हें अपना ड्राइवर, माली, रसोईया, गार्ड व घरेलू नौकर भी नहीं बनाया। इतना ही नहीं एससी, एसटी के क्लास-1 के कुछ अधिकारियों ने तो अपनी बिरादरी की पत्नी को छोड़ कर किसी अन्य फॉरवर्ड लड़की / महिला से शादी कर ली। कहां गया मा० कांसीराम का पे-बैक टू सोसायटी का नारा ? हकीकत यह है कि हमाम में सभी नंगे हैं।

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